कुछ दिन की बेनूरी है दूरी बहूत जरूरी*!  *जिन्दा रहना है तो यारों घर में रहो मजबूरी है*।!

*सम्पादकीय*
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बहूत गरूर था लोगों को अपनी दौलत और शोहरत पे एक वायरश क्या आया सारे शहर बिरान हो गये।गांव के गांव सुनशान हो गये! खेती गृहस्थी खाक मे मिल गयी बेकार किसान हो गये।!जिधर देखिये मातम पसरा सबके घर पर लगा है पहरा फसल खेत मे खङी पङी  लेकीन! सन्नाटे मे सिवान हो गये। क्या जमाना आ गया है दोस्तो! पहले लोग मरते थे तब आत्मा भटकती थी! आज आत्मा मर रही है लोग भटक रहे है। न कहीं छाँव है न ठावं है हर तरफ करोना ने पसार दिया पावँ  है। जीना मुश्किल कर दिया है दहशत ने! यह देश बर्बादी के तरफ बढा दिया एक कौम की जाहिलीयत ने! कुछ लोग आज भी इस महामारी की बिमारी को सियासत के तराजु पर तौल रहे है! धर्मान्धता की आग में जलकर खौल रहे है। खुद तो तबाही के सारथी  बने दुसरो को भी बे मौत मरने के लिये यमराज का दरवाजा खोल रहे है। इस देश की ब्यवस्था में  आस्था के सवाल को लेकर एक बर्ग रोज बवाल कर रहा है। लेकीन मजहब नही सिखाता आपस मे बैर करना। कहीं पुलिस से मारपीट तो कहीं ङाक्टरो पर हमला तो कहीं मरकज के मामले को लेकर हल्ला? आखिर लोग किस तरह की ब्यवस्था में बिश्वास करतें है! क्या करोना भी  जाति धर्म पूछ कर हमला करेगा?क्या इसमे में भी सियासत की जरूरत है क्या? इसमे भी दीन धर्म का सवाल आङे आ रहा है क्या?मौत  भी आरक्षण के हिसाब से आयेगी जायेगी? इन बेतुके सवालों का जहाब मिलना आसान भी नहीं है। लेकीन जिस तरह से समाज में जहर बोया जा रहा है तथा आस्था के नाम पर दुर्ब्यवस्था फैलाया जा रहा है। यह इस देश की समरसता के लिये घातक बनता जा रहा है।कुछ लोग कल के चक्कर मे आज को बर्बाद कर रहे है। भविष्य के लिये बर्तमान को कलंकित कर रहे है। करोना कहर बरपाने के लिये माकूल माहौल पाकर मुस्करा रहा है।जिस चीज की जरूरत है भरपूर इस देश में उसे उपलब्ध होता जा रहा है। जाहिलीयत के चलते लोग खुद ही अपनी बर्बादी के लिये मौत को निमन्त्रण दे रहे है।हालात अभी काबू है लेकीन जिस तरह से पूरे देश मे एक साथ हजारो लोग बिभिन्न देशो प्रान्तों मे फैल गये है कहीं करोना को माहौल मिला तो फीर इस देश के परिवेश को बदलने में समय नहीं लगेगा। हर तरफ हाहाकार होगा!  गांव गली मुहल्ला शहर बाजार में केवल चित्कार होगा! इस आफत मे हिफाजत करने वाला कोई नही होगा! हर परिवार जार जार रोयेगा न हिन्दू होगा न मुसलमान होगा! मरने वाला केवल इन्सान होगा?। यह दौर बहस बाजी का नहीं समाहल कर चलने का है।बर्बादी की बर्षात पहचान कर आफत नही बरसती! तबाही की ताकत के आगे इन्सान बौना पङ जाता है! जब तक समझता है सब कुछ बर्बाद हो चुका होता है। अपनी नादानी को याद कर जीवन भर रोता है जो गया वह दोखज मेक गया कि जन्नत में  गया पता नहीँ  लेकीन जो बच गये वे जीवन भर दर्द के दरिया में ङूबते उतराते रहते है। हर सुबह हर शाम अपनी की गयी गलती का ऐहसास दिलाता है।कि गुजरा हुआ जमाना आता नही दुबारा हाफिज खुदा तुम्हारा?।अपनो के बीच से जाने वालो की यादें तङपाती है रूलाती है कि वो जाने वाले तेरी बहुत याद आये रे ? समय के साथ चलने में ही बुद्धिमानी है जान बूझकर गलती एकदम नादानी है। कल किसने देखा है। आज को बुलन्दी देना ही आक्लमन्दी है। आप के खुशहाल जिन्दगी के लिये ही कुछ दिनों की  पाबन्दी है! उसका भी दुरूपयोग कहाँ की आक्लमन्दी है। दस दिन गुजर गये महज चार दिन बाकी है। हमारी आप की सुरक्षा मे दिन रात मेहनत कर रही वर्दी खाकी है। उस पर भी हमला? आज के माहौल मे प्रशासन भी है दहला! आने वाला कल निश्चित रूप से  पैदा करेगा बवाला!आज वही हालत हो गयी है कि चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय दो चाकी के बीच मे साबित बचा न कोय? गरीब अपना दिन बदलने की आस में आज करोना के कहर के आगाज से गमगीन है। दो जून की रोटी के लिये मोहताज है।
 घरों मे कैद है बस दूसरे की आस है? दिलशाद था की फूल खिलेगे बहार में! मारा गया गरीब इसी ऐतबार मे! न दिन को चैन है न रात को अमन है। हमेशा सशंकित मन है। कुछ लोग धर्म कर्म के नाम पर जहर फैला रहे है वहीँ गरीब असहाय जिन्दगीं को बचाने के लिये कर रहा उपाय है  इस आस मे मे की मूझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता सिसकते जिन्दगी  को भी किनारा मिल गया होता?।  वक्त आज खौफनाक हादसो के सौगात के साथ सारी दुनियाँ का चक्कर लगा रहा है। जैसे जैसै भारत के तरफ बढ रहा है सबका दिल धङक रहा है।लागङाऊन का समय समाप्त होने के तरफ सरक रहा है। अस्पतालो मे भीङ बढ रही है। करोना का अट्टाहास जारी है! कही कम तो कही गम दे रही यह बिमारी है।सारी दुनियाँ को गमगीन कर रखी ये महामारी है।आप का सहयोग ही खतम कर सकता है यह रोग!  दूरी बनाकर रहना पसन्द नहीं करता है करोना यह उसकी कमजोरी है। इसी लिये यह जरूरी है समय का सागर हिलोरे मार रहा है। कब सूनामी बन जाये किसे पता है?।आपसी भाई चारा ही इसे रोक पायेगा तभी तक हम आप परेशान है जब तक दिलों में  कटुता है?।आईये हम आप सब मिलकर इस महामारी को बढने से लोकने के तरीको का अमल करें बहुत दिन गूजर गये कुछ दिन और धैर्य धरें?आने वाला  कल मुस्कराते  खिखिलाते नवजीवन का प्रवाह मे अगङाई लेकर आने को बेचैन है। बस थोङा सा आप सावधान रहे! दूरी बनाकर रहे! चार दिनो और घरो मे रहे! कुछ नही कर पायेगा करोना।यह बात उपर वाले के भरोशे छोङ दे जो होगा वो तो है ही होना कुछ खुशहाल रहेंगे  कुछ को तो  पङेगा ही रोना@। बस इतना सा काम करो घर मे आराम करो मुँह पर मास्क लगाना हाथों को है धोना? जिन्दगी का यह दौर भी कट जायेगा ?  बस सावधान रहे सतर्क रहे।
बेदनाओ के धधकते कुङं मे कलम को तपाता हूं ?
आता नही शब्दो का उत्कर्ष
बिभिन्ताओ के भंवर से खीच कर लाता हूं ।।
🙏सिंििंंिि