बीआरआई के जवाब में बाजार के रास्ते चीन की घेराबंदी करेगा भारत

भारत चीन की आर्थिक चुनौती को स्वीकार करने को तैयार दिख रहा है। हाल ही में भारत ने चीन की 'बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई) को लेकर होने वाली बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इस बैठक में 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों के शामिल होने की बात कही गई है। चीन ने 2017 में बीआरआई की पहली बैठक आयोजित की थी और भारत ने उसका भी बहिष्कार किया था।


 

बीआरआई के तहत छह गलियारे बनाने की योजना है, जिनमें से कई गलियारों पर काम भी जारी है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है। भारत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताता है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा है और उस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है। ऐसे में भारत की इजाजत के बिना चीन वहां से आर्थिक गलियारा नहीं बना सकता है।

गौरतलब है कि चीन की बीआरआई परियोजना का अमेरिका और जापान सहित कई देशों ने भी विरोध किया है। अमेरिका ने कहा है कि चीन की यह परियोजना जिन देशों से गुजरेगी, उन देशों के किए यह आर्थिक सहयोग कम और खतरा ज्यादा उत्पन्न करेगी। बीआरआई परियोजना का मकसद दुनिया भर में चीन के निवेश से बुनियादी परियोजनाओं का विकास करना और चीन के प्रभुत्व को बढ़ाना है। चीन ने आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 2013 में यह परियोजना पेश की।


इसके तहत चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मेरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है। ऐसे में दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि बीआरआई परियोजना को लेकर होने वाली बैठक के बहिष्कार और अमेरिका तथा जापान के साथ वैश्विक मंच पर चीन की इस परियोजना का विरोध करके भारत ने चीन से आर्थिक मुकाबले की शुरुआत कर दी है।

पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और मसूद अजहर के मामले में चीन के अड़ियल रवैये को भारत ने चुनौती की तरह स्वीकार किया है। चीन के खिलाफ दोहरी रणनीति की जरूरत है। एक तो सरकार के स्तर पर आर्थिक रणनीति बनाई जाए और दूसरा है, करोड़ों उपभोक्ताओं द्वारा चीनी वस्तुओं का विरोध। बेशक चीन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था के मुकाबले पांच गुना बड़ी है और वह सैन्य ताकत के मामले में भी आगे है।

इसके बावजूद भारत के पास 110 लाख करोड़ रुपये का मजबूत उपभोक्ता बाजार है और यह बाजार चीनी कंपनियों की बड़ी जरूरत है। ऐसे में यदि भारत के उपभोक्ता बाजार में स्वदेशी भावना से चीनी सामान पर कुछ नियंत्रण लग जाए, तो यह चीन के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। भारत में सस्ते चीनी सामान की आवक तेजी से बढ़ी है। भारत के कई उद्योग भी कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हैं।

देश के कोने-कोने के बाजारों में चीन में उत्पादित वस्तुओं का ढेर लग गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा चीन के मोबाइल भारत में बिकते हैं। चूंकि चीन में जीडीपी की वृद्धि दर वर्ष 2018 में घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई है। यह दर 1990 से यानी पिछले 28 वर्षों में अब तक की सबसे धीमी जीडीपी वृद्धि दर है। ऐसे में धीमी पड़ती हुई चीनी अर्थव्यवस्था पर भारतीय बाजार से मांग कम होने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

चीन अपनी आर्थिक मंदी को कम करने के लिए बीआरआई परियोजना पर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में चीन के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने की रणनीति को आगे बढ़ाना होगा।